

Synopsis
यह कहानी एक मध्यमवर्गीय परिवार की है जो बच्चों के स्कूल एडमिशन को एक बड़े मिशन की तरह झेलता है, जहाँ हर खर्च पर कटौती करनी पड़ती है — माँ की पुरानी साड़ियाँ, रिपीटेड जूते, पुराने बैग और अधमरे जूते तक भी सहने पड़ते हैं। परिवार मदद के लिए दोस्तों, रिश्तेदारों और धनाढ्य मित्रों तक पहुंचता है, लेकिन हर दरवाजे पर निराशा ही हाथ लगती है। स्कूल प्रबंधन किसी तरह की रियायत नहीं देता, उल्टा फीस के साथ गतिविधियों और शुल्कों का लंबा-चौड़ा चार्ट थमा देता है। किसी तरह बच्चों का एडमिशन होता है, लेकिन चैन की सांस के साथ बीपी और शुगर की दवाएं भी साथ चलती हैं। यह व्यंग्य वर्तमान शिक्षा व्यवस्था और आम आदमी की हालत पर एक तीखा और सटीक कटाक्ष है।
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